तेरी चाहत का वो मौसम सुहाना याद आया है,
तेरा मुस्कुरा करके वो नजरें झुकाना याद आया है,
जो सावन की काली घटा सी छाई रहती थी,
उन जूलफों का चेहरे से हटना याद आया है,
तुझे छेड़ने की खातिर जो अक्सर गुनगुनाता था,
वो नगमा आशिकाना आज फिर याद आया है,
मेरी साँसें उलझती थी तेरे कदमों की तेजी में,
तेरा मुड़-मुड़ कर आना और जाना याद आया है,
तेरा लड़ना झगड़ना और मुझसे रूठ कर जाना,
वो तेरा रूठ कर खुद मान जाना याद आया है,
ना रस्ते हैं ना मंजिल है मिजाज भी है अावारा,
तेरे दिल में मेरे दिल का ठिकाना याद आया है,
जिसके हर लफज में लिपटी हुई थी मेरी कई रातें,
आज तेरा वो आखिरी खत हथेली पर जलाया है।
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